HEMASTROLOGY
Picture

तंत्र में भी आराध्य हैं गणेश                                           

Picture
T
  भगवान गणेश की तस्वीर को देखें तो उसमें एक हाथी और मनुष्य का सम्मिश्रण दिखता है, जिसमें उनके नीचे एक चूहा है। यह तस्वीर तीन विश्वों को निरूपित करती है, एक तो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल या सूर्य, चंद्र और अग्नि। इस प्रतीकात्मकता को जीवों और स्तनधारियों के समूह से लिया गया है। मानवता इसमें बड़े और छोटे विश्वों के बीच कहीं है। इसी वजह से गणेश को तीन गुणों से संपन्न कहा गया है।

गणेश का विघ्नों से संबंध उनकी हाथी के रूप में बलशाली होने से बनता है। बुद्धि मनुष्य की तरह तेज और क्षुद्र जगहों तक पहुंच पाने की शक्ति बताता है उनका वाहन चूहा। आमतौर पर गणेश चार भुजाओं वाले बनाए जाते हैं जो चार दिशाओं या चार तत्वों से संबंधित हैं। गणेश का मतलब है गणों के अधीश्वर। तांत्रिक प्रतीकों में यह विशेषण काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

तांत्रिक पद्धतियों में गणेश को कुंडलिनी के मूलाधार चक्र का स्वामी माना गया है। मूलाधार चक्र को पृथ्वी तत्व का निरूपक कहा जाता है जिसे पीतवर्ण के वर्गाकार और लं बीजमंत्र से समझा जाता है। इस वर्गाकार के चारों ओर चार पत्ते हैं। इसके अंदर बीजमंत्र से नीचे शिवलिंग का वास होता है। हर बीजमंत्र का एक वाहन होता है और लं का वाहन है हाथी। इसलिए तांत्रिक विचारधारा में गणेश के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाता है।

गणपति यंत्र

भगवान बीजमंत्रों से मनाए जाते हैं। कुंडलिनी को जगाने के लिए इन्हीं बीजमंत्रों का प्रयोग किया जाता है। भगवान गणेश के यंत्र को महागणपति यंत्र कहा गया है। गणेश को कई रूपों में देखा जाता है- हेरम्ब, हरिद्रा और उच्छिष्ट गणपति। शरदतिलक नाम के एक तंत्र ग्रंथ में महागणपति की उपासना के बारे में कहा गया है कि उन्हें (गणेश को) पूजने के लिए साधक को उनका यह रूप ध्यान में लाना चाहिए- अक्षरों से बने कमल के पत्ते पर गणेश विराजमान हैं। साधक को नौरत्नों वाले द्वीप को ध्यान में रखना चाहिए जो गन्ने के रस के सागर में विद्यमान है। एक मद्धम शीतल हवा वहां से बह रही है, जो इस द्वीप के तटों से आकर टकराती है। यह स्थान मंदार, पारिजात और अन्य कल्पवृक्षों का वन है। इन नौ रत्नों की आभा से द्वीप की भूमि जगमगा रही है। छहों ऋतुएं वहां होती हैं। सूर्य और चंद्र इस स्थान को प्रकाशित करते हैं। द्वीप के मध्य में एक पारिजात वृक्ष है जिस पर नौ रत्न लगे हैं और उसके नीचे एक पीठ पर महागणपति विद्यमान हैं। हाथी मुख पर उनके एक चंद्र विराजमान है। वह लाल रंग के हैं और उनके तीन नेत्र हैं। उनकी गोद में उनकी प्रिया बैठी हैं जिनके हाथ में एक कमल है। गणेश के दस हाथों में दस विभिन्न वस्तुएं हैं। उनके कान हिलाते ही उनके आसपास मंडरा रही मक्खियां दूर हो जाती हैं, जो उनके शरीर से नि:सृत पदार्थ से आकर्षित होकर पहुंच रही हैं। गणपति अपनी सूंढ़ में पकड़े गए जार से एक-एक कर रत्नों को इधर-उधर फैला रहे हैं। उन्होंने अपने सिर पर रत्नजटित मुकुट पहन रखा है।

गणपति की पूजा के लिए बीज मंत्र है गं। पूजा से पूर्व साधक या साधिका को इसे अपने शरीर पर धारण करना चाहिए और धीमे स्वरों में बीजमंत्र का पाठ करना चाहिए। गणेश को स्वास्तिक निशान के साथ भी दिखाया जाता है, जो चार गं बीजों को साथ रखने से बनता है।

मध्यकाल से पहले लगता है कि गाणपत्य नाम का एक तांत्रिक संप्रदाय था, जो शक्ति की उपासना करता था। शिव की तरह ही गणेश पूजा भी लिंग से ही की जाती थी लेकिन वह लाल रंग का होता था।

हेरम्ब गणपति
इनका मंत्र है ओम गं नम:। वह हजारों सूर्यो के समान चमकदार हैं और एक शेर की सवारी करते हैं और विभिन्न रंगों के उनके पांच मुख हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं।
त्रैलोक्यमोहंकार गणेश
इसका मतलब है तीनों विश्वों में माया जाल रचने वाले। इसका यंत्र भी पिछले वाले की तरह ही है। हालांकि उसमें षटकोण के बीच कोई त्रिकोण नहीं है। इसकी जगह इसमें उनका मंत्र है - वक्रतुंडे क्लीं क्लीं क्लीं गं गणपते वरावरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा। इसका मतलब बताता है कि इसे खास किस्म के कर्मकांड में प्रयोग किया जाता है।
सिद्धिविनायक
इसका मंत्र है ओम नमो सिद्धिविनायक सर्वकार्यकत्रयी सर्वविघ्नप्रशामण्य सर्वराज्यवश्याकारण्य सर्वज्ञानसर्व स्त्रीपुरुषाकारषण्य। गणोश के इस रूप का प्रयोग खास सिद्धि हासिल करने के लिए और विघ्नों का नाश करने के लिए होता है।
शक्तिविनायक
इसका मंत्र है ओम ह्रीं ग्रीं ह्रीं। इस मंत्र के ऋषि हैं भार्गव। ग्रीं बीज है और ह्रीं शक्ति। इसमें शक्तिविनय का ध्यान किया जाता है। यंत्र षटकोणीय होता है जिसमें यह बीजमंत्र लिखा जाता है।
लक्ष्मीविनायक
इसमें षटकोणीय यंत्र का प्रयोग होता है लेकिन मंत्र केंद्र में होता है- ओम श्रीं गं सौम्याय गणपत्ये वारवरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा।
हरिद्रा गणेश
हरिद्रा रूप के लिए मंत्र है ओ हं गं ग्लां और इसका यंत्र लक्ष्मी विनायक जैसा ही होता है, जिसके मध्य में बीजमंत्र रखा जाता है। इस रूप में चार भुजाधारी गणेश पूरी तरह पीत वस्त्रों में दिखाए जाते हैं। एक हाथ उनकी सूंढ़ को छू रहा होता है।
उच्छिष्ट गणपति
इसे पूजा के बाद संपन्न किया जाता है। गणपति के इस रूप में 9 अक्षरों का एक मंत्र होता है, इसके बाद 12 अक्षरों का, फिर 19, 32 और 37 अक्षरों के मंत्र सम्मिलित होते हैं

विनायकस्तोत्र ॥

॥ विनायकस्तोत्र ॥


मूषिकवाहन मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बितसूत्र ।
वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥

देवदेवसुतं देवं जगद्विघ्नविनायकम् ।
हस्तिरूपं महाकायं सूर्यकोटिसमप्रभम् ॥ १॥

वामनं जटिलं कान्तं ह्रस्वग्रीवं महोदरम् ।
धूम्रसिन्दूरयुद्गण्डं विकटं प्रकटोत्कटम् ॥ २॥

एकदन्तं प्रलम्बोष्ठं नागयज्ञोपवीतिनम् ।
त्र्यक्षं गजमुखं कृष्णं सुकृतं रक्तवाससम् ॥ ३॥

दन्तपाणिं च वरदं ब्रह्मण्यं ब्रह्मचारिणम् ।
पुण्यं गणपतिं दिव्यं विघ्नराजं नमाम्यहम् ॥ ४॥

देवं गणपतिं नाथं विश्वस्याग्रे तु गामिनम् ।
देवानामधिकं श्रेष्ठं नायकं सुविनायकम् ॥ ५॥

नमामि भगवं देवं अद्भुतं गणनायकम् ।
वक्रतुण्ड प्रचण्डाय उग्रतुण्डाय ते नमः ॥ ६॥

चण्डाय गुरुचण्डाय चण्डचण्डाय ते नमः ।
मत्तोन्मत्तप्रमत्ताय नित्यमत्ताय ते नमः ॥ ७॥

उमासुतं नमस्यामि गङ्गापुत्राय ते नमः ।
ओङ्काराय वषट्कार स्वाहाकाराय ते नमः ॥ ८॥

मन्त्रमूर्ते महायोगिन् जातवेदे नमो नमः ।
परशुपाशकहस्ताय गजहस्ताय ते नमः ॥ ९॥

मेघाय मेघवर्णाय मेघेश्वर नमो नमः ।
घोराय घोररूपाय घोरघोराय ते नमः ॥ १०॥

पुराणपूर्वपूज्याय पुरुषाय नमो नमः ।
मदोत्कट नमस्तेऽस्तु नमस्ते चण्डविक्रम ॥ ११॥

विनायक नमस्तेऽस्तु नमस्ते भक्तवत्सल ।
भक्तप्रियाय शान्ताय महातेजस्विने नमः ॥ १२॥

यज्ञाय यज्ञहोत्रे च यज्ञेशाय नमो नमः ।
नमस्ते शुक्लभस्माङ्ग शुक्लमालाधराय च ॥ १३॥

मदक्लिन्नकपोलाय गणाधिपतये नमः ।
रक्तपुष्प प्रियाय च रक्तचन्दन भूषित ॥ १४॥

अग्निहोत्राय शान्ताय अपराजय्य ते नमः ।
आखुवाहन देवेश एकदन्ताय ते नमः ॥ १५॥

शूर्पकर्णाय शूराय दीर्घदन्ताय ते नमः ।
विघ्नं हरतु देवेश शिवपुत्रो विनायकः ॥ १६

फलश्रुति

mantra

Picture
श्रीमदाद्यशंकराचार्यकृतं श्रीहनुमत्पञ्रत्‍‌नस्तोत्रम्
वीताखिलविषयेच्छं जातानन्दाश्रुपुलकमत्यच्छम्।
सीतापतिदूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम्॥
तरुणारुणमुखकमलं करुणारसपूरपूरितापाङ्गम्।
संजीवनमाशासे मञ्जुलमहिमानमञ्जनाभाग्यम्॥
शम्बरवैरिशरातिगमम्बुजदलविपुललोचनोदारम्।
कम्बुगलमनिलदिष्टं विम्बज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे॥
दूरीकृतसीतार्ति: प्रकटीकृतरामवैभवस्फूर्ति:।
दारितदशमुखकीर्ति: पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्ति:॥
वानरनिकराध्यक्षं दानवकुलकुमुदरविकरसदृक्षम्।
दीनजनावनदीक्षं पावनतप:पाकपुञ्जमद्राक्षम्॥
एतत् पवनसुतस्य स्तोत्रं य: पठति पञ्चरत्‍‌नाख्यम्। चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्तिभाग् भवति॥ अर्थ :- जिनके हृदय से समस्त विषयों की इच्छा दूर हो गयी है, (श्रीराम के प्रेम में विभोर हो जाने के कारण) जिनके नेत्रों में आनन्द के आँसू और शरीर में रोमाञ्च हो रहे हैं, जो अत्यन्त निर्मल हैं, सीतापति श्रीरामचन्द्रजी के प्रधान दूत हैं, मेरे हृदय को प्रिय लगनेवाले उन पवनकुमार हनुमानजी का मैं ध्यान करता हूँ। बाल रवि के समान जिनका मुखकमल लाल है, करुणारस के समूह से जिनके लोचन-कोर भरे हुए हैं, जिनकी महिमा मनोहारिणी है, जो अञ्जना के सौभाग्य हैं, जीवनदान देनेवाले उन हनुमानजी से मुझे बडी आशा है। जो कामदेव के बाणों जीत चुके हैं, जिनके कमलपत्र के समान विशाल एवं उदार लोचन हैं, जिनका शङ्ख के समान कण्ठ और बिम्बफल के समान अरुण ओष्ठ हैं, जो पवन के सौभाग्य हैं, एकमात्र उन हनुमानजी की ही मैं शरण लेता हूँ। जिन्होंने सीताजी का कष्ट दूर किया और श्रीरामचन्द्रजी के ऐश्वर्य की स्फूर्ति को प्रकट किया, दशवदन रावण की कीर्ति को मिटानेवाली वह हनुमानजी की मूर्ति मेरे सामने प्रकट हो। जो वानर-सेना के अध्यक्ष हैं, दावनकुलरूपी कुमुदों के लिये सूर्य की किरणों के समान हैं, जिन्होंने दीनजनों की रक्षा की दीक्षा ले रखी है, पवनदेव की तपस्या के परिणामपुञ्ज उन हनुमानजी का मैंने दर्शन किया। पवनकुमार श्रीहुनमानजी के इस पञ्चरत्‍‌न नामक स्तोत्र का जो पाठ करता है, वह इस लोक में चिर-काल तक समस्त भोगों को भोगकर श्रीराम-भक्ति का भागी होता है

पितृस्तोत्र

Picture
  पितृस्तोत्र
।।रूचिरूवाच।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः। नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

रूचि बोले - जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।

विशेष - मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

अभीष्ट फल दायक बाह्य शान्ति सूक्त

Picture
             अभीष्ट फल दायक बाह्य शान्ति सूक्त
(कुल-देवता की प्रसन्नता के लिए अमोघ अनुभूत सूक्त)

नमो वः पितरो, यच्छिव तस्मै नमो, वः पितरो यतृस्योन तस्मै।
नमो वः पितरः, स्वधा वः पितरः।।1
नमोऽस्तु ते निर्ऋर्तु, तिग्म तेजोऽयस्यमयान विचृता बन्ध-पाशान्।
यमो मह्यं पुनरित् त्वां ददाति। तस्मै यमाय नमोऽस्तु मृत्यवे।।2
नमोऽस्त्वसिताय, नमस्तिरश्चिराजये। स्वजाय वभ्रवे नमो, नमो देव जनेभ्यः।।3
नमः शीताय, तक्मने नमो, रूराय शोचिषे कृणोमि।
यो अन्येद्युरूभयद्युरभ्येति, तृतीय कायं नमोऽस्तु तक्मने।।4
नमस्ते अधि वाकाय, परा वाकाय ते नमः। सुमत्यै मृत्यो ते नमो, दुर्मत्यै त इदं नमः।।5
नमस्ते यातुधानेभ्यो, नमस्ते भेषजेभ्यः। नमस्ते मृत्यो मूलेभ्यो, ब्राह्मणेभ्य इदं मम।।6
नमो देव वद्येभ्यो, नमो राज-वद्येभ्यः। अथो ये विश्वानां, वद्यास्तेभ्यो मृत्यो नमोऽस्तु ते।।7
नमस्तेऽस्तु नारदा नुष्ठ विदुषे वशा। कसमासां भीम तमा याम दत्वा परा भवेत्।8
नमस्तेऽस्तु विद्युते, नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्तेऽस्तु वश्मने, येना दूड़ाशे अस्यसि।।9
नमस्तेऽस्त्वायते, नमोऽस्तु पराय ते। नमस्ते प्राण तिष्ठत, आसीनायोत ते नमः।।10
नमस्तेऽस्त्वायते, नमोऽस्तु पराय ते। नमस्ते रूद्र तिष्ठत, आसीनायोत ते नमः।।11
नमस्ते जायमानायै, जाताय उत ते नमः। वालेभ्यः शफेभ्यो, रूपायाघ्न्ये ते नमः।।12
नमस्ते प्राण क्रन्दाय, नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्ते प्राण विद्युते, नमस्ते प्राण वर्षते।।13
नमस्ते प्राण प्राणते, नमोऽस्त्वपान ते।
परा चीनाय ते नमः, प्रतीचीनाय ते नमः, सर्वस्मै न इदं नमः।।14
नमस्ते राजन् ! वरूणा मन्यवे, विश्व ह्यग्र निचिकेषि दुग्धम्।
सहस्त्रमन्यान् प्रसुवामि, साकं शतं जीवाति शरदस्तवायं।।15
नमस्ते रूद्रास्य ते, नमः प्रतिहितायै। नमो विसृज्य मानायै, नमो निपतितायै।।16
नमस्ते लांगलेभ्यो, नमः ईषायुगेभ्यः। वीरूत् क्षेत्रिय नाशन्यप् क्षैत्रियमुच्छतु।।17
नमो गन्धर्वस्य, नमस्ते नमो भामाय चक्षुषे च कृण्मः।
विश्वावसो ब्रह्मणा ते नमोऽभि जाया अप्सासः परेहि।।18
नमो यमाय, नमोऽस्तु, मृत्यवे, नमः पितृभ्य उतये नयन्ति।
उत्पारणस्य यो वेद, तमग्नि पुरो दद्येस्याः अरिष्टतातये।।19
नमो रूद्राय, नमोऽस्तु तक्मने, नमो राज्ञ वरूणायं त्विणीमते।
नमो दिवे, नमः पृथिव्ये, नमः औषधीभ्यः।।20
नमो रूराय, च्यवनाय, रोदनाय, घृष्णवे। नमः शीताय, पूर्व काम कृत्वने।।21
नमो वः पितर उर्जे, नमः वः पितरो रसाय।।22
नमो वः पितरो भामाय, नमो वः पितरा मन्धवे।।23
नमो वः पितरां पद घोरं, तस्मै नमो वः पितरो, यत क्ररं तस्मै।।24

विधि:-
1. पूजा पाठ से पहले दक्षिणाभिमुख होकर एक सूक्त का पाठ करना है।
2. नित्य पाठ एवं हवन आवश्यक है।
3. उक्त सूक्त के 24 श्लोकों में से 22 वें, 23 वें, और 24 वें श्लोक का पाठ दो बार अतिरिक्त करें। अर्थात् पहले 1 से 24 तक पाठ कर लें, फिर 22, 23 व 24 वें श्लोकों को दो बार और पाठ करें। इस प्रकार उक्त तीन श्लोकों का पाठ तीन बार होगा। तब इस ‘सूक्त’ का एक पाठ पूर्ण होगा।
4. काले तिल एवं शुद्ध घी से हवन। हवन में भी उक्त तीन श्लोकों से तीन-तीन आहुतियाँ दी जायेगी।
5. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ही पाठ व हवन करें।
6. केवल एक आवृत्ति पाठ और एक ही आवृत्ति से हवन करें।                                                                 www.hemlata.webs.com

श्री भैरव मन्त्र

Picture
श्री भैरव मन्त्र
“ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल। हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल। मस्तक बिराज तिलक सिन्दूर। शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ। ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। नित उठ करो आदेश-आदेश।”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन। रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे। भोग में गुड़ व तेल का शीरा तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए। यह प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है।

शीघ्र धन प्राप्ति के लिए शीघ्र धन प्राप्ति के लिए
“ॐ नमः कर घोर-रुपिणि स्वाहा”
विधिः उक्त मन्त्र का जप प्रातः ११ माला देवी के किसी सिद्ध स्थान या नित्य पूजन स्थान पर करे। रात्रि में १०८ मिट्टी के दाने लेकर किसी कुएँ पर तथा सिद्ध-स्थान या नित्य-पूजन-स्थान की तरफ मुख करके दायाँ पैर कुएँ में लटकाकर व बाँएँ पैर को दाएँ पैर पर रखकर बैठे। प्रति-जप के साथ एक-एक करके १०८ मिट्टी के दाने कुएँ में डाले। ग्तारह दिन तक इसी प्रकार करे। यह प्रयोग शीघ्र आर्थिक सहायता प्राप्त करने के लिए है।

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र  “डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
 विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

सभा मोहन सभा मोहन
“गंगा किनार की पीली-पीली माटी। चन्दन के रुप में बिके हाटी-हाटी।। तुझे गंगा की कसम, तुझे कामाक्षा की दोहाई। मान ले सत-गुरु की बात, दिखा दे करामात। खींच जादू का कमान, चला दे मोहन बान। मोहे जन-जन के प्राण, तुझे गंगा की आन। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”
विधिः- जिस दिन सभा को मोहित करना हो, उस दिन उषा-काल में नित्य कर्मों से निवृत्त होकर ‘गंगोट’ (गंगा की मिट्टी) का चन्दन गंगाजल में घिस ले और उसे १०८ बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर श्री कामाक्षा देवी का ध्यान कर उस चन्दन को ललाट (मस्तक) में लगा कर सभा में जाए, तो सभा के सभी लोग जप-कर्त्ता की बातों पर मुग्ध हो जाएँगे।

शत्रु-मोहन “चन्द्र-शत्रु राहू पर, विष्णु का चले चक्र। भागे भयभीत शत्रु, देखे जब चन्द्र वक्र। दोहाई कामाक्षा देवी की, फूँक-फूँक मोहन-मन्त्र। मोह-मोह-शत्रु मोह, सत्य तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र।। तुझे शंकर की आन, सत-गुरु का कहना मान। ॐ नमः कामाक्षाय अं कं चं टं तं पं यं शं ह्रीं क्रीं श्रीं फट् स्वाहा।।”
विधिः- चन्द्र-ग्रहण या सूर्य-ग्रहण के समय किसी बारहों मास बहने वाली नदी के किनारे, कमर तक जल में पूर्व की ओर मुख करके खड़ा हो जाए। जब तक ग्रहण लगा रहे, श्री कामाक्षा देवी का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का पाठ करता रहे। ग्रहण मोक्ष होने पर सात डुबकियाँ लगाकर स्नान करे। आठवीं डुबकी लगाकर नदी के जल के भीतर की मिट्टी बाहर निकाले। उस मिट्टी को अपने पास सुरक्षित रखे। जब किसी शत्रु को सम्मोहित करना हो, तब स्नानादि करके उक्त मन्त्र को १०८ बार पढ़कर उसी मिट्टी का चन्दन ललाट पर लगाए और शत्रु के पास जाए। शत्रु इस प्रकार सम्मोहित हो जायेगा कि शत्रुता छोड़कर उसी दिन से उसका सच्चा मित्र बन जाएगा।

पीलिया का मंत्र पीलिया का मंत्र
“ओम नमो बैताल। पीलिया को मिटावे, काटे झारे। रहै न नेंक। रहै कहूं तो डारुं छेद-छेद काटे। आन गुरु गोरख-नाथ। हन हन, हन हन, पच पच, फट् स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को ‘सूर्य-ग्रहण’ के समय १०८ बार जप कर सिद्ध करें। फिर शुक्र या शनिवार को काँसे की कटोरी में एक छटाँक तिल का तेल भरकर, उस कटोरी को रोगी के सिर पर रखें और कुएँ की ‘दूब’ से तेल को मन्त्र पढ़ते हुए तब तक चलाते रहें, जब तक तेल पीला न पड़ जाए। ऐसा २ या ३ बार करने से पीलिया रोग सदा के लिए चला जाता है।

दाद का मन्त्र दाद का मन्त्र
“ओम् गुरुभ्यो नमः। देव-देव। पूरा दिशा भेरुनाथ-दल। क्षमा भरो, विशाहरो वैर, बिन आज्ञा। राजा बासुकी की आन, हाथ वेग चलाव।”
विधिः- किसी पर्वकाल में एक हजार बार जप कर सिद्ध कर लें। फिर २१ बार पानी को अभिमन्त्रित कर रोगी को पिलावें, तो दाद रोग जाता है।

आँख की फूली काटने का मन्त्र आँख की फूली काटने का मन्त्र
“उत्तर काल, काल। सुन जोगी का बाप। इस्माइल जोगी की दो बेटी-एक माथे चूहा, एक काते फूला। दूहाई लोना चमारी की। एक शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, फुरो मन्त्र-ईश्वरो वाचा”
विधिः- पर्वकाल में एक हजार बार जप कर सिद्धकर लें। फिर मन्त्र को २१ बार पढ़ते हुए लोहे की कील को धरती में गाड़ें, तो ‘फूली’ कटने लगती है।

नजर उतारने के उपाय December 4, 2008 – 9:09 pm यह पोस्ट पूर्व में भी प्रकाशित हो चुकी है। पाठकों के अनुरोध पर परिवर्धित सामग्री के साथ इसे पुनः प्रकाशित किया जा रहा है।

नजर उतारने के उपाय
१॰ बच्चे ने दूध पीना या खाना छोड़ दिया हो, तो रोटी या दूध को बच्चे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुत्ते या गाय को खिला दें।

२॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर से ‘आठ’ बार उतार कर अग्नि में जला दें। ‘नजर’ लगी होगी, तो मिर्चों की धांस नहीँ आयेगी।

३॰ जिस व्यक्ति पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे व्यक्ति पर उससे हाथ फिरवाने से लाभ होता है।

४॰ पश्चिमी देशों में नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड’ कहकर लकड़ी के फर्नीचर को छू लेता है। ऐसी मान्यता है कि उसे नजर नहीं लगेगी।

५॰ गिरजाघर से पवित्र-जल लाकर पिलाने का भी चलन है।

६॰ इस्लाम धर्म के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अण्डा’ या ‘जानवर की कलेजी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख दें। दरगाह या कब्र से फूल और अगर-बत्ती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के सिरहाने रख दें या खिला दें।

७॰ एक लोटे में पानी लेकर उसमें नमक, खड़ी लाल मिर्च डालकर आठ बार उतारे। फिर थाली में दो आकृतियाँ- एक काजल से, दूसरी कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली में डाल दें। एक लम्बी काली या लाल रङ्ग की बिन्दी लेकर उसे तेल में भिगोकर ‘नजर’ वाले पर उतार कर उसका एक कोना चिमटे या सँडसी से पकड़ कर नीचे से जला दें। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखें। गरम-गरम काला तेल पानी वाली थाली में गिरेगा। यदि नजर लगी होगी तो, छन-छन आवाज आएगी, अन्यथा नहीं।

८॰ एक नींबू लेकर आठ बार उतार कर काट कर फेंक दें।

९॰ चाकू से जमीन पे एक आकृति बनाए। फिर चाकू से ‘नजर’ वाले व्यक्ति पर से एक-एक कर आठ बार उतारता जाए और आठों बार जमीन पर बनी आकृति को काटता जाए।

१०॰ गो-मूत्र पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाए और उसके आस-पास पानी में मिलाकर छिड़क दें। यदि स्नान करना हो तो थोड़ा स्नान के पानी में भी डाल दें।

११॰ थोड़ी सी राई, नमक, आटा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल सूखी मिर्च लेकर, जिसे ‘नजर’ लगी हो, उसके सिर पर सात बार घुमाकर आग में डाल दें। ‘नजर’-दोष होने पर मिर्च जलने की गन्ध नहीं आती।

१२॰ पुराने कपड़े की सात चिन्दियाँ लेकर, सिर पर सात बार घुमाकर आग में जलाने से ‘नजर’ उतर जाती है।

१३॰ झाडू को चूल्हे / गैस की आग में जला कर, चूल्हे / गैस की तरफ पीठ कर के, बच्चे की माता इस जलती झाडू को 7 बार इस तरह स्पर्श कराए कि आग की तपन बच्चे को न लगे। तत्पश्चात् झाडू को अपनी टागों के बीच से निकाल कर बगैर देखे ही, चूल्हे की तरफ फेंक दें। कुछ समय तक झाडू को वहीं पड़ी रहने दें। बच्चे को लगी नजर दूर हो जायेगी।

१४॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी वाली 7 लाल मिर्च, राई के दाने तथा फिटकरी की डली को बच्चे या बड़े पर से 7 बार उबार कर, आग में डालने से सबकी नजर दूर हो जाती है।

१५॰ फिटकरी की डली को, 7 बार बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर आग में डालने से नजर तो दूर होती ही है, नजर लगाने वाले की धुंधली-सी शक्ल भी फिटकरी की डली पर आ जाती है।

१६॰ तेल की बत्ती जला कर, बच्चे/बड़े/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हुए दीवार पर चिपका दें। यदि नजर लगी होगी तो तेल की बत्ती भभक-भभक कर जलेगी। नजर न लगी होने पर शांत हो कर जलेगी।

१७॰ “नमो सत्य आदेश। गुरु का ओम नमो नजर, जहाँ पर-पीर न जानी। बोले छल सो अमृत-बानी। कहे नजर कहाँ से आई ? यहाँ की ठोर ताहि कौन बताई ? कौन जाति तेरी ? कहाँ ठाम ? किसकी बेटी ? कहा तेरा नाम ? कहां से उड़ी, कहां को जाई ? अब ही बस कर ले, तेरी माया तेरी जाए। सुना चित लाए, जैसी होय सुनाऊँ आय। तेलिन-तमोलिन, चूड़ी-चमारी, कायस्थनी, खत-रानी, कुम्हारी, महतरानी, राजा की रानी। जाको दोष, ताही के सिर पड़े। जाहर पीर नजर की रक्षा करे। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधि- मन्त्र पढ़ते हुए मोर-पंख से व्यक्ति को सिर से पैर तक झाड़ दें।

१८॰ “वन गुरु इद्यास करु। सात समुद्र सुखे जाती। चाक बाँधूँ, चाकोली बाँधूँ, दृष्ट बाँधूँ। नाम बाँधूँ तर बाल बिरामनाची आनिङ्गा।”



विधि- पहले मन्त्र को सूर्य-ग्रहण या चन्द्र-ग्रहण में सिद्ध करें। फिर प्रयोग हेतु उक्त मन्त्र के यन्त्र को पीपल के पत्ते पर किसी कलम से लिखें। “देवदत्त” के स्थान पर नजर लगे हुए व्यक्ति का नाम लिखें। यन्त्र को हाथ में लेकर उक्त मन्त्र ११ बार जपे। अगर-बत्ती का धुवाँ करे। यन्त्र को काले डोरे से बाँधकर रोगी को दे। रोगी मंगलवार या शुक्रवार को पूर्वाभिमुख होकर ताबीज को गले में धारण करें।

१९॰ “ॐ नमो आदेश। तू ज्या नावे, भूत पले, प्रेत पले, खबीस पले, अरिष्ट पले- सब पले। न पले, तर गुरु की, गोरखनाथ की, बीद याहीं चले। गुरु संगत, मेरी भगत, चले मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधि- उक्त मन्त्र से सात बार ‘राख’ को अभिमन्त्रित कर उससे रोगी के कपाल पर टिका लगा दें। नजर उतर जायेगी।

२०॰ “ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय, ह्रीं धरणेन्द्र-पद्मावती सहिताय। आत्म-चक्षु, प्रेत-चक्षु, पिशाच-चक्षु-सर्व नाशाय, सर्व-ज्वर-नाशाय, त्रायस त्रायस, ह्रीं नाथाय स्वाहा।”
विधि- उक्त जैन मन्त्र को सात बार पढ़कर व्यक्ति को जल पिला दें।

२१॰ “टोना-टोना कहाँ चले? चले बड़ जंगल। बड़े जंगल का करने ? बड़े रुख का पेड़ काटे। बड़े रुख का पेड़ काट के का करबो ? छप्पन छुरी बनाइब। छप्पन छुरी बना के का करबो ? अगवार काटब, पिछवार काटब, नौहर काटब, सासूर काटब, काट-कूट के पंग बहाइबै, तब राजा बली कहाईब।”
विधि- ‘दीपावली’ या ‘ग्रहण’-काल में एक दीपक के सम्मुख उक्त मन्त्र का २१ बार जप करे। फिर आवश्यकता पड़ने पर भभूत से झाड़े, तो नजर-टोना दूर होता है।

२२॰ डाइन या नजर झाड़ने का मन्त्र
“उदना देवी, सुदना गेल। सुदना देवी कहाँ गेल ? केकरे गेल ? सवा सौ लाख विधिया गुन, सिखे गेल। से गुन सिख के का कैले ? भूत के पेट पान कतल कर दैले। मारु लाती, फाटे छाती और फाटे डाइन के छाती। डाइन के गुन हमसे खुले। हमसे न खुले, तो हमरे गुरु से खुले। दुहाई ईश्वर-महादेव, गौरा-पार्वती, नैना-जोगिनी, कामरु-कामाख्या की।”
विधि- किसी को नजर लग गई हो या किसी डाइन ने कुछ कर दिया हो, उस समय वह किसी को पहचानता नहीं है। उस समय उसकी हालत पागल-जैसी हो जाती है। ऐसे समय उक्त मन्त्र को नौ बार हाथ में ‘जल’ लेकर पढ़े। फिर उस जल से छिंटा मारे तथा रोगी को पिलाए। रोगी ठीक हो जाएगा। यह स्वयं-सिद्ध मन्त्र है, केवल माँ पर विश्वास की आवश्यकता है।
 

२३॰ नजर झारने के मन्त्र
१॰ “हनुमान चलै, अवधेसरिका वृज-वण्डल धूम मचाई। टोना-टमर, डीठि-मूठि सबको खैचि बलाय। दोहाई छत्तीस कोटि देवता की, दोहाई लोना चमारिन की।”
२॰ “वजर-बन्द वजर-बन्द टोना-टमार, डीठि-नजर। दोहाई पीर करीम, दोहाई पीर असरफ की, दोहाई पीर अताफ की, दोहाई पीर पनारु की नीयक मैद।”
विधि- उक्त मन्त्र से ११ बार झारे, तो बालकों को लगी नजर या टोना का दोष दूर होता है।

२४॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“आकाश बाँधो, पाताल बाँधो, बाँधो आपन काया। तीन डेग की पृथ्वी बाँधो, गुरु जी की दाया। जितना गुनिया गुन भेजे, उतना गुनिया गुन बांधे। टोना टोनमत जादू। दोहाई कौरु कमच्छा के, नोनाऊ चमाइन की। दोहाई ईश्वर गौरा-पार्वती की, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- नमक अभिमन्त्रित कर खिला दे। पशुओं के लिए विशेष फल-दायक है।

 

२५॰ नजर उतारने का मन्त्र

“ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारु, खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे फाँस। कहाँ-कहाँ से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बन्दी कर लावेगा। न लावेगा, तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।”
विधिः- छोटे बच्चों और सुन्दर स्त्रियों को नजर लग जाती है। उक्त मन्त्र पढ़कर मोर-पंख से झाड़ दें, तो नजर दोष दूर हो जाता है।

 

२६॰ नजर-टोना झारने का मन्त्र
“कालि देवि, कालि देवि, सेहो देवि, कहाँ गेलि, विजूवन खण्ड गेलि, कि करे गेलि, कोइल काठ काटे गेलि। कोइल काठ काटि कि करति। फलाना का धैल धराएल, कैल कराएल, भेजल भेजायल। डिठ मुठ गुण-वान काटि कटी पानि मस्त करै। दोहाई गौरा पार्वति क, ईश्वर महादेव क, कामरु कमख्या माई इति सीता-राम-लक्ष्मण-नरसिंघनाथ क।”
विधिः- किसी को नजर, टोना आदि संकट होने पर उक्त मन्त्र को पढ़कर कुश से झारे।

नोट :- नजर उतारते समय, सभी प्रयोगों में ऐसा बोलना आवश्यक है कि “इसको बच्चे की, बूढ़े की, स्त्री की, पुरूष की, पशु-पक्षी की, हिन्दू या मुसलमान की, घर वाले की या बाहर वाले की, जिसकी नजर लगी हो, वह इस बत्ती, नमक, राई, कोयले आदि सामान में आ जाए तथा नजर का सताया बच्चा-बूढ़ा ठीक हो जाए। सामग्री आग या बत्ती जला दूंगी या जला दूंगा।´´

भैरव वशीकरण मन्त्र भैरव वशीकरण मन्त्र
१॰ “ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधिः- सर्व-प्रथम किसी रविवार को गुग्गुल, धूप, दीपक सहित उपर्युक्त मन्त्र का पन्द्रह हजार जप कर उसे सिद्ध करे। फिर आवश्यकतानुसार इस मन्त्र का १०८ बार जप कर एक लौंग को अभिमन्त्रित लौंग को, जिसे वशीभूत करना हो, उसे खिलाए।

२॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
विधिः- २१,००० जप। आवश्यकता पड़ने पर २१ बार गुड़ को अभिमन्त्रित कर साध्य को खिलाए।

३॰ “ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
विधिः- उक्त मन्त्र को सात बार पढ़कर पीपल के पत्ते को अभिमन्त्रित करे। फिर मन्त्र को उस पत्ते पर लिखकर, जिसका वशीकरण करना हो, उसके घर में फेंक देवे। या घर के पिछवाड़े गाड़ दे। यही क्रिया ‘छितवन’ या ‘फुरहठ’ के पत्ते द्वारा भी हो सकती है।